जम्मू-कश्मीर चुनाव के मद्देनजर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने अपने घोषणा-पत्र जारी किए हैं, जो बुनियादी तौर पर भारत-विरोधी लगते हैं. पहले सवाल होते रहते थे कि एक ही राष्ट्र में कश्मीर को यह ‘विशेष दर्जा’ क्यों हासिल है? दो-दो व्यवस्थाएं कैसे काम कर सकती हैं?
मोदी सरकार ने ऐतिहासिक पहल की और 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त करने का बिल संसद से पारित करा दिया. अब 2024 में विधानसभा चुनावों की घोषणा की गई है, तो पुराने मुद्दों को नए संदर्भों में उठाया जा रहा है. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने अनुच्छेद 370, 35-ए की बहाली का आश्वासन दिया है. जम्मू-कश्मीर के ‘अलग झंडे’ की बात कही गई है. ऐसा है, तो आने वाली विधानसभा में ‘अलग संविधान’ का प्रस्ताव भी पारित किया जा सकता है. इसके लिए दलीलें दी जाती रही हैं कि विलय के समझौता-पत्र में उल्लेख था कि कश्मीर का अपना ‘अलग झंडा’ और ‘अलग संविधान’ होगा. ये दलीलें कुतर्क हैं, क्योंकि विलय-पत्र में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. सियासतदानों को जरा पढ़ लेना चाहिए. बहरहाल पत्थरबाजों की दोबारा सरकारी नौकरी में बहाली होगी और जेल से सियासी कैदियों की रिहाई की जाएगी.
ऐसे में कई कैदियों की रिहाई भी की जा सकती है. पाकिस्तान से सटी ‘नियंत्रण रेखा’ पर कारोबार की नई शुरुआत के साथ-साथ पाकिस्तान के साथ बातचीत और जनसंपर्क भी शुरू किया जाएगा. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी सोच के स्तर पर पाकपरस्त रही हैं, लेकिन सवाल है कि क्या एक विधानसभा ऐसे मुद्दों को पारित कर सकती है? विदेश और रक्षा नीतियां केंद्र सरकार तय करेगी अथवा संघशासित क्षेत्र की विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया जा सकता है?
भारतीय संसद ने अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त किया था और सर्वोच्च अदालत ने भी उसे ‘उचित, संवैधानिक निर्णय’ माना था. तो विधानसभा चुनाव में पार्टियां इनकी बहाली और ‘विशेष दर्जे’ की वापसी का वायदा कैसे कर सकती हैं? यह सवाल नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से पूछा गया था. उनका जवाब था कि आने वाली सर्वोच्च अदालत में कश्मीर की बुनियादी सोच वाले न्यायाधीश भी आ सकते हैं! केंद्र में मौजूदा सरकार की विदाई हो सकती है तथा विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की सरकार बन सकती है! हमने जम्मू-कश्मीर के अवाम को आश्वस्त किया है कि तब तक हम इंतजार करेंगे, लेकिन लड़ाई लगातार लड़ते रहेंगे.
हम चुप नहीं बैठेंगे. एक घोषणा-पत्र में कहा गया है कि ‘शंकराचार्य के पर्वत’ का इस्लामी नाम ‘तख्त-ए-सुलिमान’ रखा जाएगा. क्या कश्मीर को एक बार फिर ‘इस्लामिक’ बनाने के मंसूबे हैं? नेशनल कॉन्फ्रेंस तो शेख अब्दुल्ला की ही विरासत है, लिहाजा उनकी सियासत भी वही होगी. पीडीपी ने यहां तक घोषणा की है कि ‘जमात-ए-इस्लामी’ पर से प्रतिबंध हटा दिया जाएगा. यानी कश्मीर में अलगाववाद, आतंकवाद, हड़ताल और बंद की पुरानी स्थितियों की वापसी के रास्ते तैयार किए जा रहे हैं? घोषणा-पत्र में आरक्षण खत्म करने का आश्वासन दिया गया है. क्या गुर्जर, बक्करवाल, दलित, पहाड़ी जातियों के आरक्षण खत्म किए जाएंगे? यह निर्णय कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति पर आघात की तरह साबित हो सकता है. ऐसे कई आश्वासन घोषणा-पत्रों में दिए गए हैं. बेशक ये देश-विरोधी घोषणाएं हैं.
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