September 19, 2024

नजरिया- बंगाल में बवाल और ममता की अग्निपरीक्षा

पश्चिम बंगाल की युवा और छात्र शक्ति गुस्से और आक्रोश में है. प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के विरोध-प्रदर्शन और 12 घंटे के बंद के बाद अब 3 सितंबर को वाममोर्चा का काडर भी सड़कों पर उतरेगा. सभी की साझा मांग है कि ममता बनर्जी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें. मगर ममता की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल की छात्र विंग द्वारा भी प्रदेश बंद का आहवान करना आश्चर्यजनक है.

दरअसल, कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में ड्यूटी कर रही ट्रेनी डॉक्टर के साथ जो वीभत्स-दुष्कर्म कर हत्या की गई, उससे समूचा देश शर्मसार है. साझा आंदोलन का मुद्दा यही है. यह ममता बनर्जी की राजनीति का सबसे कठिन दौर है, क्योंकि छात्रों-युवाओं और महिलाओं के समवेत आंदोलनों ने ही ममता को सड़क से शिखर तक पहुंचाया था. आज ममता ऐसे ही आंदोलनों के युवाओं और छात्रों को ‘गुंडा’ करार दे रही हैं. सच तो यही है कि आंदोलन और शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन तो हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है. आंदोलनकारियों ने कुछ पथराव किया, तो उनके मानसिक रोष को समझना चाहिए था. आंदोलन की ताकत इसी से समझी जा सकती है कि 80,000 से अधिक युवा और छात्र सड़कों पर आंदोलित हुए.

यह ममता बनर्जी की सत्ता के खिलाफ सामूहिक लहर का एक प्रमाण है. यह बंगाल में 2026 का जनादेश भी तय कर सकता है. यूं भी ममता-विरोधी आंदोलनों ने सभी बंगालियों को जागृत कर दिया है. ये उनके लिए चेतावनी की घंटी है. औसतन बंगाल, महिला-सुरक्षा और सम्मान का पक्षधर रहा है. बंगाल देवी दुर्गा और मां काली की आराधना-स्थली है. अगले माह दुर्गा पूजा और फिर दीपावली के त्योहार हैं. आह्वान किए जा रहे हैं कि ये त्योहार न मनाए जाएं. आखिर एक बेटी को कुचल कर मारा गया है. इंसाफ अभी निश्चित नहीं है, क्योंकि सीबीआई की जांच जारी है. साक्ष्य तब मिटा दिए गए थे, जब हजारों की भीड़ एक रात में अचानक अस्पताल तक आई और सब कुछ तबाह कर दिया. बंगाल पुलिस उस भीड़ को भी रोक नहीं पाई और उसकी खुफिया सूचना भी हासिल नहीं कर पाई.

‘ममता दीदी’ को इन सभी अपराधों के जवाब देने होंगे. जबकि ‘रेप-मर्डर’ बर्बर मामले के संदर्भ में मुख्यमंत्री ने ही अस्पताल के प्रशासन और पुलिस के निकम्मेपन का बचाव किया था, इसलिए ममता की भूमिका को भी अक्षम्य माना गया. सर्वोच्च अदालत की न्यायिक पीठ ने ऐसी ही तल्ख टिप्पणियां की थीं. ममता इन आंदोलनों को राम-वाम और कांग्रेस पर थोप कर अग्निपरीक्षा पार नहीं कर सकतीं. राज्य के गवर्नर लगातार मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ टिप्पणियां कर रहे हैं. उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रपति और गृह मंत्री से मुलाकात भी की है, लिहाजा बंगाल में अनुच्छेद 356 के तहत ‘राष्ट्रपति शासन’ लगाने की चर्चाएं भी जारी हैं.

कुल मिलाकर राज्य सरकार बिल्कुल नाकाम है, संवैधानिक मशीनरी ढह चुकी है, कानून-व्यवस्था अराजक स्थिति में है, अपराध बढ़ रहे हैं और राजनीतिक हत्याएं भी की जा रही हैं, लिहाजा 356 का यह फिट केस है, लेकिन ममता ‘सड़किया राजनेता’ हैं. वह फिर सड़क पर बैठ सहानुभूति हासिल कर सकती हैं, लिहाजा 356 चस्पां करना है, तो गंभीर विमर्श के बाद ही किया जाना चाहिए. विपक्ष सवाल उठा रहा है कि आंदोलित युवाओं पर पुलिसिया बल प्रयोग क्यों किया गया? क्या रेप व हत्या की शिकार हुई प्रशिक्षु चिकित्सक को न्याय नहीं मिलना चाहिए? लगता है जब तक उसे न्याय नहीं मिलेगा, आंदोलन पर आंदोलन जारी रहेंगे.