महिला हॉकी ओलंपिक क्वालिफ़ायर में पहले ही मैच में अमेरिका के हाथों से हारने के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम ने अपने सेमीफ़ाइनल में स्थान बनाने की संभावनाओं को कमज़ोर कर लिया है.
पिछले साल एशियाई खेलों में भारतीय टीम पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में नहीं बदल पाने की कमज़ोरी की वजह से स्वर्ण पदक तक नहीं पहुंच सकी थी और इसकी वजह से ही उसे इस क्वालिफ़ायर में खेलना पड़ रहा है.
भारतीय टीम ने कुछ माह पहले एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में इसी मैदान पर जो प्रदर्शन किया, उसकी झलक कभी दिखी ही नहीं.
पिछले काफी समय से पेनल्टी कॉनरों को गोल में नहीं बदल पाने की कमज़ोरी भारतीय टीम में साफ़तौर पर नज़र आई है. हम सभी जानते हैं कि मौजूदा हॉकी में पेनल्टी कॉर्नर मैचों में परिणाम निकालने में अहम भूमिका निभाते हैं. भारतीय टीम काफी समय से इस क्षेत्र में कमज़ोर दिख रही है.
भारतीय टीम इस टूर्नामेंट की जब साई के बेंगलुरू केंद्र पर तैयारी कर रही थी, उस समय इस क्षेत्र में सुधार करने के लिए भारत के जाने-माने ड्रेग फ्लिकर रहे रूपिंदर पाल का पांच दिनों का शिविर लगाया गया था.
उन्होंने अपने अनुभव से खिलाड़ियों को बहुत कुछ सिखाने का काम किया. पर टीम में इस मामले में कोई सुधार नज़र नहीं आया. रूपिंदर पाल ने एशियाई खेलों से पहले भी ऐसा ही शिविर लगाया था, पर उस समय भी टीम की यह प्रमुख कमज़ोरी रही थी.
इससे एक बात तो साफ है कि इस कमज़ोरी को दूर करने के लिए दीर्घकालीन प्रयास करने की ज़रूरत है. वैसे भी एक अच्छा ड्रेग फ्लिकर बनाने के लिए बहुत मेहनत करने की ज़रूरत है. इस बात को भारतीय पुरुष टीम के ड्रेग फ्लिकर हरमनप्रीत को देखकर समझा जा सकता है. इसलिए इस क्षेत्र में किसी विशेषज्ञ को स्थाई तौर पर लगाने की ज़रूरत है.
भारत ने इस मुक़ाबले में सात पेनल्टी कॉर्नरों को बर्बाद किया. इससे मैच में दबाव बनाने में वह कामयाब नहीं हो सकी.
इन सभी मौकों पर भारतीय खिलाड़ियों ने गोल पर सीधा निशाना साधने का प्रयास किया और अमेरिका की गोलकीपर बिन केलसे को वह कभी गच्चा देने में सफल नहीं हो सकीं. भारत को पेनल्टी कॉर्नरों पर बेहतर परिणाम पाने के लिए इससे लेने के और तरीके ईजाद करने होंगे.