बीरेंद्र कुमार झा
भारत में अलग-अलग समय पर होने वाले लोकसभा,विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों के अलग-अलग समय में होने की वजह से चुनाव में बढ़ते खर्च, समय की बर्बादी और अन्य प्रतिकूल कारकों को मद्दे नजर रखते हुए केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव की बात कही थी।अपनी कही इस बात को अमली जामा पहनाने की दिशा में किए जाने वाले पहले प्रयास के रूप में केंद्र सरकार ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक देश एक चुनाव पर एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया था,जिसे इस पर विभिन्न वर्गों के विशेषज्ञों और संबद्ध लोगो से गहन मंत्राणा कर एक विस्तृत रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को देना था। भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक देश एक चुनाव पर गठित उच्च स्तरीय समिति ने गुरुवार को राष्ट्रपति भवन में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी। यह रिपोर्ट 18626 पेज का है।2 सितंबर 2023 को इसके गठन के बाद एक्सपर्ट के साथ चर्चा और 191 दिनों के रिसर्च के बाद राष्ट्रपति को यह रिपोर्ट सौंप गई है।
प्रस्तावित रिपोर्ट की खास बातें
एक देश एक चुनाव की दिशा में रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपा गया प्रस्तावित रिपोर्ट लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए एकल यानि साझा मतदाता सूची पर ध्यान खींचती है।गौरतलब है कि अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए अलग-अलग मतदाता सूची तैयार की जाती है ।वहीं स्थानीय नगर निकायों और पंचायत के चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की देखरेख में मतदाता सूची होती है। इस रिपोर्ट के पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बारे में बताया गया है। दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायत को लोकसभा- विधानसभा के साथ इस तरह से जोड़ने के लिए कहा गया है जिससे निकायों के चुनाव को लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिनों के अंदर संपन्न करा लिए जाएं।
प्रारंभ में साथ-साथ होते थे लोक सभा और विधानसभा के चुनाव
एक देश एक चुनाव का सीधा सा मतलब है कि देश में होने वाले सारे चुनाव एक साथ संपन्न करा लिए जाएं।हालांकि भारत में आजादी मिलने के कुछ वर्षों तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ ही होते थे, लेकिन बाद के समय में विधानसभा समय से पहले भंग होने लगे और सरकारें बिना कार्यकाल पूरा किए ही बीच में गिरने लगी।ऐसे में 6 महीने के अंदर चुनाव जरा लेने के संविधान के निर्देशों के अनुसार अलग-अलग विधान सभाओं में पर अलग-अलग समय पर चुनाव संपन्न कराए जाने लगे। इसके अलावा लोकसभा का कार्यकाल भी कई बार बीच में ही अल्पमत में आने के कारण या अन्य कई कारणों से भंग हुआ, जिस कारण लोकसभा के भी मध्यावधि चुनाव 5 वर्षों की जगह अलग समय में हुई और लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव को एक साथ करने की जो परंपरा प्रारंभ हुई थी वह छिन्न-भिन्न हो गई।
रिपोर्ट में दी गई सलाह
* लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के आम चुनाव के साथ-साथ पंचायत और नगर पालिकाओं में चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 324 ए की शुरुआत की जाए।
* एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र को सक्षम करने के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन किया जाए।
* एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता पहचान पत्र में संशोधन का काम राज्य चुनाव आयोग की सलाह पर भारत का चुनाव आयोग करे।
एक देश एक चुनाव के फायदे
एक देश एक चुनाव कराने के कई फायदे है। इन फायदाओं में से कुछ प्रमुख फायदे निम्नलिखित हैं
पैसों की बर्बादी से बचाना
माना जाता है कि एक देश एक चुनाव बिल के लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि बच जाएगी। 1951- 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में 11 करोड रुपए खर्च हुए थे, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड रुपए की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई थी। पीएम मोदी कह चुके हैं कि एक देश एक चुनाव होने से देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।
बार-बार चुनाव करने की झांझर से छुटकारा
भारत जैसे विशाल देश में अलग-अलग समय पर अलग-अलग जगहों पर चुनाव होते रहते हैं। हर वर्ष देश के किसी ने किसी हिस्से में चुनाव होते रहते हैं। इन चुनावों के आयोजन में पूरी की पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन एक देश एक चुनाव बिल लागू होने से चुनाव की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा। पूरे देश में चुनाव के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी,जिससे सरकार के विकास कार्यों में कोई रुकावट नहीं आएगी।
काले धन पर लगेगी रोक
यह एक हकीकत है कि आजकल चुनाव लड़ना काफी खर्चीला हो गया है।हालांकि चुनाव में संपन्न लोगों द्वारा धन के दुरुपयोग कर चुनाव को प्रभावित कर कोई उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल न हो जाए इसके लिए चुनाव आयोग ने विभिन्न स्तर के चुनावों के लिए उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले चुनाव खर्च की एक सीमा निर्धारित कर दी है ,लेकिन हकीकत यह है की चुनाव के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों द्वारा इससे कहीं अधिक धनराशि खर्च की जाती है। चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित खर्च की सीमा से बाहर बड़ी मात्रा में होने वाले ये खर्चे ब्लैक मनी के द्वारा जुटाए गए पैसों से किये जाते है iऐसे में कहा जा रहा है कि दभारत में एक देश एक चुनाव लागू होने के बाद काले धन की इस समस्या से भी बहुत हद तक छुटकारा मिल जाएगा।
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