बीरेंद्र कुमार झा
इन दिनों कई राजनेताओं के द्वारा बिना किसी ठोस आधार प्रस्तुत किए ही जाति व्यवस्था के लिए प्राचीन वर्ण व्यवस्था को जिम्मेदार मानते हुए तरह-तरह से भ्रामक और भड़काऊ बयान बयान दिए जाते हैं। ऐसे ही एक मामले में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और मंत्री उदयनिधि स्टालिन की तरफ से सनातन धर्म पर दिए एक विवादास्पद रूप बयान को लेकर मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। उदयनिधि स्टालिन के इस बयान को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम जिस जाति व्यवस्था को आज जानते हैं, उसका इतिहास एक सदी से भी कम का है,इसलिए जाति के आधार पर समाज में पैदा हुए विभाजन और भेदभाव के लिए पूरी तरह वर्ण व्यवस्था को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।मदरसा हाई कोर्ट के जस्टिस अनीता सुमंत ने कहा कि यह माना जा सकता है कि जाति व्यवस्था के चलते भेदभाव हो रहा है, लेकिन इस व्यवस्था का इतिहास एक शताब्दी से भी कम का है।
समाज में जातिगत तनाव उत्पन्न होने के पीछे वर्ण व्यवस्था नहीं,तनाव से लाभ लेने की प्रवृति है
अदालत ने कहा कि तमिलनाडु में 370 पंजीकृत जातियां हैं। अलग-अलग जातियों के बीच अक्सर तनाव की स्थिति भी पैदा हो जाती है, लेकिन इसकी वजह सिर्फ जाति नहीं होती बल्कि उन्हें मिलने वाले फायदे होते हैं, जो इस प्रकार का तनाव उत्पन्न करने में सहायक होते हैं। अदालत ने कहा कि हम मानते हैं कि समाज में जाति के आधार पर भेदभाव है और इसे खत्म किए जाने की जरूरत है, लेकिन हम जिस जाति व्यवस्था को आज जानते हैं, उसका इतिहास एक सदी से ज्यादा पुराना नहीं है।तमिलनाडु में ही 370 से ज्यादा रजिस्टर्ड जातियां है।उनके बीच भी कई बार इसलिए मतभेद होते हैं कि कोई कहता है कि हमारी उपेक्षा हो रही है और दूसरे को महत्व मिल रहा है।इस संघर्ष की एक बड़ी वजह एक दूसरे को मिल रहे इसके फायदे होते हैं।
प्राचीन वर्ण व्यवस्था जैसे दोषी है
मद्रास हाई कोर्ट की जस्टिस अनीता सुमंत ने सवालिया लहजे में कहा कि जब जातिगत तनाव की स्थिति आती है, तो क्या इसका पूरा दोष सिर्फ प्राचीन वर्ग व्यवस्था पर ही मढ़ा जा सकता है? उन्होंने कहा कि जब हम इसका जवाब तलाशेंगे तो इसका उत्तर ना में मिलेगा। अदालत ने कहा कि इतिहास में भी ऐसा होता रहा है कि लोग जाति के नाम पर एक दूसरे पर हमला बोलते रहे हैं। न्यायालय के बेंच ने कहा कि पुराने दौर की बुराइयों को खत्म करने के लिए जरूरी है कि इसमें लगातार सुधार किया जाए। आत्मविश्लेषण हो और हम उन तरीकों के बारे में सोचें जिनके जरिए भेदभाव खत्म किया जा सके।
वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती है
मद्रास हाई कोर्ट के बेंच ने कहा कि वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती है। यह लोगों के काम या पेशे पर आधारित थी। यह व्यवस्था इसलिए बनी थी कि समाज सुचारू रूप से काम कर सके। यहां लोगों की पहचान उनके काम से की जाती थी। यहां तक कि आज भी लोगों की पहचान काम के आधार पर ही होते हैं। अदालत ने अपने फैसले में स्टालिन को नसीहत दी है कि वह किसी वर्ग को आहत करने वाले बयान देने से बचें । गौरतलब है कि हाल ही में उनकी पार्टी डीएम के नेता ए राजा ने भगवान राम और मंदिर को लेकर भी टिप्पणी की थी, जिस पर एक वर्ग एतराज जताया था।