बीरेंद्र कुमार झा
बिहार समाजवादियों का गढ़ रहा है।पिछले 40 वर्षों से देश की समाजवादियों में बिहार के नेता पहली कतार में रहे हैं। उनके भाषण सुनने के लिए लाखों करोड़ों लोग इंतजार करते हैं इस बार के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार लालू यादव के भाषण भाषणों को तो लोग सुनेंगे लेकिन कई ऐसे नेता भी हैं जो अब इस दुनिया में नहीं रहे।जनता इन नेताओं के चुटीले भाषणों को सुनने के लिए तरसेंगे। ऐसे नेताओं में शामिल हैं दिवंगत रामविलास पासवान, शरद यादव और रघुवन प्रसाद सिंह। दिवंगत रामविलास पासवान और शरद यादव सामाजिक समीकरण को लेकर ज्यादा मशहूर थे तो वही राष्ट्रीय फलक पर मनरेगा मैन के रूप में मशहूर दिवंगत नेता रघुवन प्रसाद सिंह की ठेठ गवईं जवान कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में जोश भर देता था।जहां लालू प्रसाद यादव का याद सवाल है तो बीमारी ने उनकी आवाज को भी सीमित कर दिया है।
रामविलास अक्सर कहां करते थे यह बात
दिवंगत समाजवादी नेता रामविलास पासवान के भाषणों में भी कुछ ऐसी बातें होती थी,जिन्हें वह लगभग सभी सभाओं में कहा करते थे। वह कहा करते थे कि हम उस घर में दिया जलाने चले हैं, जहां सदियों से अंधेरा था।उस बाग का माली अच्छा होता है, जिसमें सभी तरह के फूल खिले।बात साफ है कि ऐसे जमीनी नेताओं की आवाज से इस बार का लोकसभा चुनाव का मंच सूना – सूना नजर आएगा।
लाल यादव भी नहीं रहेंगे बहुत सक्रिय
कुल मिलाकर वे सभी नेता जिन्होंने 90 की दशक में समाजवादी राजनीति को नई जुबान दी,नई पहचान दी, उन नेताओं के जुमले अब किसी दूसरे की जुबान से ही सुनने को मिलेंगे। हालांकि संभव है कि लालू प्रसाद यादव इस बार भी एक – आध मंच साझा कर लें। ऐसे में उनका वह अंदाज देखने को मिल सकता है जिसमें वह सियासी मंच पर लागल लागल झुलनिया के धक्का, बलम कोलकाता चल गइले, जैसे लोकरंग वाले गाना गाकर मतदाताओं के हुजूम को जोशीले ज्वार में तब्दील कर विरोधियों की खेमे में खलबली मचा देते थे।
अभी भी निरंतर और दमदार है नीतीश कुमार
इन समाजवादियों के गढ़ बिहार में अब इकलौते नीतीश कुमार ऐसे हैं जिनकी आवाज में मतदाताओं को बांधने वाला जादू है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषणों में उनके अभी तक के काम और आगे के रचनात्मक कार्यों की झलक मिलती है। योजनाओं की गहन जानकारी और उनके सफल होने तक की कहानी जब सुनते हैं तो बिहार का मतदाता उनमें एक स्टेटमेन की छवि देखते हैं।उनका बोलने का नजरिया भी गवईं शब्दों से युक्त होता है। जब यह बोलते हैं कि आप तो जानवे करते हैं हम हमेशा कुछ ना कुछ करते ही रहते हैं तो श्रोताओं को वे अपने लग जाते हैं और वे अपने पक्ष में वोटों का जुगाड़ कर लेते हैं।