बीरेंद्र कुमार झा
इस बार 24 मार्च की शाम को होलिका दहन होगा और उसके दूसरे दिन होली मनाई जाएगी।होलिका की चिता भूमि पर अगजा या सम्मत के साथ ही होली की शुरुआत हो जाती है। इस जगह का अपना अलग महत्व भी है और यहां की होली की परंपरा भी अलग है।यहां आज भी अगजा यानी सम्मत की राख से ही होली खेलने की परंपरा है। यहां होली रंगों का त्यौहार नहीं, बल्कि मसाने की राख का त्यौहार है। जैसा कि हम सब जानते हैं की होलिका राजा हिरणकश्यप की बहन थी,जो अपने भाई के कहने पर भतीजे प्रहलाद को आग में जलाना चाहती थी।लेकिन हवा के झोंके से वह खुद जल गई।प्रहलाद को जिंदा देख लोग खुशी से नाचने लगे और होलिका की चिता की राख एक दूसरे पर डालने लगे। कहा जाता है कि इस तरह से लोक पर्व होली की शुरुआत हुई।
हिरणकश्यप काल से जुड़े अवशेष है मौजूद
प्रचलित कथाओं के अनुसार होलिका की चिता भूमि बिहार के पूर्णिया जिला में स्थित है। बिहार के पूर्णिया जिला के बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में आज भी हिरणकश्यप काल से जुड़े अवशेष मौजूद है।सभी साक्ष्यों से प्रमाणित हो चुका है कि यह वही स्थल है,जहां होलिका का दहन हुआ था।इसी भूमि पर भक्त प्रहलाद बाल बाल बच गए थे।तभी से यहां पर होली मनाई जाती है। बनमनखी में होलिका दहन महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। आज भी यहां के लोग रंगों से नहीं बल्कि राख से होली खेलते हैं।
हिरणकश्यप की बहन थी होलिका
असुरराज हिरणकश्यप और उसकी पत्नी का कयाधु के पुत्र प्रहलाद जन्म से ही विष्णु भक्त थे । इससे हिरणकश्यप उसे अपना शत्रु समझने लगे थे। अपने पुत्र को खत्म करने के लिए हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ प्रहलाद को अग्नि में जलाने की योजना बनाई।होलिका के पास एक ऐसी चादर थी, जिस पर आग का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता था। योजना के अनुसार ही हिरणकाश्यप ने अपनी बहन होलिका को वहीं चादर लपेटकर प्रहलाद को गोद में बिठाकर आग लगा दी।तभी तेज हवा चली और चादर होलिका के शरीर से हटकर प्रहलाद के शरीर पर आ गिरा जिससे होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया।
भगवान नरसिंह ने किया था हिरणकश्यप का वध
पूर्णिया के इसी स्थान पर आज वह खंभा भी मौजूद है,जिसके बारे में यह धारणा है कि इसी पत्थर के खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लेकर हिरणकश्यप का वध किया था। जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर बनमनखी प्रखंड स्थित धरहरा गांव में एक प्राचीन मंदिर है।भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा यह खंबा कभी 400 एकड़ में फैला था।आज यह घटकर 100 एकड़ में ही सिमट गया है।भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा यह खंभा माणिक्य स्तंभ आज भी यहां मौजूद है।कहा जाता है इस खंबे को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया,लेकिन यह टूटा तो नहीं बल्कि यह स्तंभ झुक जरूर गया है।
हर मन्नत होती है पूरी
पुर्णिया स्थित भगवान नरसिंह के इस मनोहरी मंदिर में भगवान ब्रह्मा,विष्णु व शंकर समेत 40 देवताओं की मूर्तियां स्थापित है।नरसिंह अवतार की इस मंदिर का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं। उनका मानना है कि यहां आने से उनकी सभी मुरादे पूरी होती है। इस संबंध में कमलेश्वरी देवी का कहना है कि यहां सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।साथ ही होली के दिन इस मंदिर में धूल खेल होली खेलने वालों की मुराद सीधे भगवान नरसिंह के कानों तक पहुंचती है।इसी वजह से होली के दिन यहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ होली खेलने और भगवान नरसिंह के दर्शन के लिए जुटती है।