September 20, 2024

नजरिया (सुदर्शन चक्रधर) – महिला उत्पीड़न और दागी जनप्रतिनिधि

आज महिलाएं जहां एक तरफ सफलता के नए-नए आयाम गढ़ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ अनेक महिलाएं जघन्य हिंसा और अपराध का शिकार हो रही हैं. उनको मारा-पीटा जाता है, उनका अपहरण किया जाता है, उनके साथ दुष्कर्म किया जाता है, उनको जला दिया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है! लेकिन क्या हम कभी ये सोचते हैं कि आखिर वे कौन-सी महिलाएं हैं, जिनके साथ हिंसा होती है या उनके साथ हिंसा करने वाले लोग कौन है? हिंसा का मूल कारण क्या है और इसे खत्म कैसे किया जाए?

जाह़िर है कि हम में से अधिकांश लोग कभी भी इन प्रश्नों पर विचार नहीं करते. इसके विपरीत हम जब भी किसी महिला के साथ हिंसा की खबर देखते या सुनते हैं, तो उस हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने की बजाय अपने घर की महिलाओं, बहनों और बेटियों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा देते हैं, जो स्वयं एक प्रकार की हिंसा ही है. इन्हीं सब कारणों के चलते संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 25 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है. इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के प्रति लोगों को जागरुक करना है. ऐसे विषयों पर राजनीति भी होती है, मगर हमारे कई जनप्रतिनिधि भी ऐसे मामलों लिप्त पाए गए हैं.

महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध का कोई मामला जब तूल पकड़ता है, तब उसे लेकर सवाल उठाने वालों, विरोध प्रदर्शनों का आह्वान करने और उसमें हिस्सा लेने वालों में बहुत सारे नेता और खासतौर पर जनप्रतिनिधि भी मुखर रूप से शामिल होते हैं. किंतु इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जो जनप्रतिनिधि इस सवाल पर आक्रोशित जनता के साथ खड़े दिखते हैं, वे खुद अपने सहयोगियों पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध के आरोपों को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं होते. यह छिपा तथ्य नहीं है कि गंभीर आरोपों से घिरे कई उम्मीदवार किसी भी सीट पर न सिर्फ चुनाव लड़ते हैं, बल्कि कई तो जीत कर जनप्रतिनिधि भी बन जाते हैं!

अगर किसी जनप्रतिनिधि पर महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध करने या उसमें शामिल होने का आरोप है, तो उससे महिलाओं के हक में ईमानदार लड़ाई की कितनी उम्मीद की जा सकती है! जनता के नुमाइंदे कहे जाने वाले जो लोग खुद गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोपी होते हैं, वे कानून बनाने या बचाने के दायित्व के प्रति कितने गंभीर हो सकते हैं? यह बेवजह नहीं है कि चुनावी नैतिकता और शुचिता की मांग के बावजूद आज भी अच्छी-खासी संख्या में ऐसे जनप्रतिनिधि हैं, जिन पर गंभीर अपराधों के आरोप हैं.

ये मामले जगजाहिर रहे हैं, मगर इसे एक बार फिर एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिसर्च ने जारी किया है, जिसमें पिछले पांच वर्ष में महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामलों का सामना कर रहे 151 सांसदों-विधायकों को चिह्नित किया गया है. इनमें 16 पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का आरोप है. सभी आरोपों को सिर्फ राजनीतिक बदला या साजिश बता कर खारिज नहीं किया जा सकता. विडंबना यह है कि ऐसे मामलों में जांच, सुनवाई और फैसला लंबे समय तक टलता रहता है. चुनाव आयोग भी ऐसे लोगों के चुनाव लड़ने और जीत कर जनप्रतिनिधि के रूप में काम करने को लेकर कोई स्पष्ट रुख तय नहीं कर पाता! ऐसे दागी नुमाइंदों को लेकर नरम रवैया क्या एक बड़ी वजह नहीं है कि महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के खिलाफ कोई ठोस और नतीजा देने वाली व्यवस्था खड़ी नहीं हो पा रही/है?