September 8, 2024

लोकतंत्र को दफन करने का कारोबार! क्या भाजपा डकार लेगी हिमाचल की भी सरकार?

चक्रव्यूह// सुदर्शन चक्रधर

भारतीय लोकतंत्र पर सियासत के गिद्ध मंडरा रहे हैं। तभी तो लोकतंत्र को दफन करने का कारोबार हिमाचल से लेकर उत्तरप्रदेश में दिखाई दे चुका है। ये गिद्ध भगवाधारी दिखाई देते हैं, जो छोटे या बड़े किसी भी चुनाव को खरीद-फरोख्त की मंडी में तब्दील कर देते हैं और जैसे ही किसी सफेदपोश दलबदलू का शव इन्हें दिखाई देता है, तुरंत उस पर बेरहमी से टूट पड़ते हैं। विभिन्न कोणों से उसको नोचते हैं और फिर डकार का फुर्र से उड़कर सत्ता के बुर्जों पर बैठ जाते हैं… और यही इन गिद्धों का ‘राष्ट्र धर्म’ बन गया है। इसका ताजातरीन नजरा हिमाचल व उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में हालिया संपन्न राज्यसभा चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग में देखा गया है।

इसकी शुरुआत हालिया संपन्न राज्यसभा चुनावों से हुई। पर्याप्त संख्या नहीं होने के बाद भी भाजपा ने तीन राज्यों यूपी, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में अतिरिक्त प्रत्याशी दिए, और ये प्रत्याशी ऐसे थे, जो विपक्षी खेमे को साम-दाम-दंड और भेद के जरिये किसी न किसी रूप में भरभंड करने की स्थिति में थे।

मसलन यूपी में उसने उस संजय सेठ को उतारा, जो पेशे से पूंजीपति हैं, और लोकतंत्र की मंडी में मौजूद घोड़ों को खरीदने की क्षमता रखते हैं। इसी तरह से कर्नाटक में भी उसने जेडीएस के साथ मिलकर दूसरा प्रत्याशी कुपेंद्र रेड्डी नाम के उस शख्स को बनाया, जो इसी प्रजाति से आते हैं, और हिमाचल में सत्तारूढ़ खेमे के अंतरविरोध को समझते हुए उसने एक पुराने कांग्रेसी हर्ष महाजन को ही अपना प्रत्याशी बना दिया। यहां अभिषेक मनु सिंघवी के नाम को लेकर कांग्रेस के भीतर विरोध था। पार्टी का एक हिस्सा उन्हें बाहरी बताकर पार्टी के इस फैसले की आलोचना कर रहा था और वह सूबे के किसी प्रत्याशी को लड़ाने का दबाव बना रहा था। बीजेपी ने इसी मौके का फायदा उठाया और उसने 2022 में कांग्रेस से टूट कर भाजपा में आए हर्ष महाजन को ही अपना प्रत्याशी बना दिया। कांग्रेस के भीतर मचे घमासान में इसने बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा का काम किया। फिर विधायकों को अपने पाले में करने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी। संवैधानिक नियमों, कानूनों और लोकतंत्र की सारी परंपराओं को धता बताते हुए उसने कांग्रेस के छह और तीन निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में कर लिया। न जाने, इन विधायकों को क्या लालच दिया गया या फिर उनको ईडी, सीबीआई से लेकर एनआईए का डर दिखाया गया इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन जनता के जनादेश पर जीत कर आयी सरकार को अपदस्थ करने की यह कोशिश लोकतंत्र का गला घोंटने सरीखी जरूर है।

इसी तरह से इसने मध्यप्रदेश में भी किया था, जब कमलनाथ सरकार को 18 महीने भी नहीं हुए थे और उसने बड़े स्तर पर विधायकों की खरीद-फरोख्त कर अपने पाले में कर एक चुनी हुई सरकार को गिरा दिया था। चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव को भी पूरे देश ने देखा और सुप्रीम कोर्ट के सामने भी उसे भारी फजीहतों का सामना करना पड़ा।

चंडीगढ़ मामले को अभी एक हफ्ते भी नहीं बीता है, उसने हिमाचल में नई नौटंकी शुरु कर दी है। बीजेपी बिल्कुल एक पतित पार्टी की तरह व्यवहार कर रही है। जिसे संविधान, मूल्य और लोकतांत्रिक परंपरा का तो कोई डर है नहीं, उसने सारी लोक-लाज भी अब ताक पर रख दी है, और अगर इसी तरह से देश चलाया गया, तो लोकतंत्र किस चिड़िया का नाम है, कुछ सालों बाद उसको ढूंढना भी लोगों के लिए मुश्किल हो जाएगा! धन और ताकत के बल पर चलने वाला लोकतंत्र कितने दिनों तक जिंदा रह सकता है? पता चला जनता सरकार चुनेगी और पैसे तथा ताकत के बल पर उसे पलट दिया जाएगा! और एक स्थिति ऐसी आ जाएगी, जब जनता और देश को भी सारे चुनाव बेमानी लगने लगेंगे। शायद बीजेपी पूरे देश को इसी स्थिति में पहुंचा देना चाहती है।

पिछले दस सालों में चली बीजेपी की सरकार का अगर कोई मूल्यांकन करे, तो वह जनता के जनादेश से ज्यादा अडानी-अंबानी, सीबीआई, ईडी, इनमकम टैक्स और ईओडब्ल्यू जैसी एजेंसियों के बल पर चली है। इन्हीं के बल पर सत्ता चल रही है और इन्हीं के सहारे सत्ता पलटी जा रही है। इसका नतीजा यह है कि जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता के शासन का अंत होने जा रहा है, और जो कुछ सांसें बची हैं, आने वाले 2024 के चुनाव में बीजेपी-संघ उसे भी खत्म कर देंगे! और फिर एक ऐसी तानाशाही का जन्म होगा जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी, ये सारे चुनाव और परिघटनाएं महज उसका ट्रेलर भर हैं!

ये तो रही बीजेपी और संघ की बात, अब उसका चाल, चरित्र और चेहरा यही हो गया है। किसी घड़ियाल से साधु बनने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। ऐसे में बीजेपी को दोष देने से पहले कांग्रेस और उसके नेताओं को अपने गिरेबान में भी झांक कर देखना चाहिए। आखिर आप अपना घर क्यों नहीं संभाल सके? हिमाचल प्रदेश में जो हो रहा है, क्या उसके लिए कांग्रेस का सूबे का नेतृत्व और हाईकमान जिम्मेदार नहीं है? क्या ये लोग बीजेपी को नहीं जानते या फिर उसकी फितरत से परिचित नहीं हैं? आपके छह प्लस तीन निर्दलीय (कुल नौ) विधायक बीजेपी उड़ा ले गयी और इनको कानों-कान खबर तक नहीं हुई! कमाल है!

इस पूरे कांड के लिए हाईकमान द्वारा नियुक्त प्रभारी (जिसकी छवि ही दलाली की रही है) राजीव शुक्ला को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। किसी तरह प्रियंका गांधी तक अपनी पहुंच बनाकर ये उसी की मलाई काट रहे हैं। लगातार राज्य सभा के सदस्य हो रहे हैं और अब केंद्रीय नेताओं की श्रेणी में गिने जाते हैं। वे बीसीसीआई के उपाध्यक्ष हैं और लगता है कि बीजेपी की कृपा से अपने आखिरी समय तक इसी पद पर विराजमान रहेंगे। जब बीजेपी, विपक्षी खेमे के सभी नेताओं के सारे संसाधनों और स्रोतों को काटने या फिर खत्म करने की कोशिश कर रही है, तब विपक्ष में बैठे एक आदमी को सत्ता क्यों अपने गले लगाए हुए है? क्या इसके बारे में कांग्रेस का नेतृत्व कभी विचार नहीं करेगा? लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि हिमाचल में चलने वाले इस पूरे खेल के पीछे इन जनाब का ही हाथ है। प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य के साथ-साथ बीजेपी के बीच अगर उन्होंने पुल का काम किया हो तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। लिहाजा कांग्रेस की नाव में छेद ही छेद थे। ऊपर से नाविक भी नया और कमजोर था। इस तरह से नाव के डूबने की आशंका बनी हुई थी। लेकिन अफसोस हाईकमान समय रहते उसे पहचान नहीं सका। अब देखना होगा कि वह नाव को डूबने से कैसे बचाता है?

राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के 6 विधायक और 3 निर्दलीय क्रॉस वोटिंग कर अपना मत भाजपा के पाले में डाल चुके थे। फिर किसी तरह सरकार बचाने की कवायद शुरू की गई, जो आखिर में बचा भी ली गई। लेकिन यह कब तक बची रहेगी? कोई नहीं जानता। आशंका है कि कहीं बीजेपी हिमाचल की सरकार भी न डकार लें! हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने इन छह बाकी कांग्रेसी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया है, लेकिन उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इसलिए हिमाचल में आगे कुछ भी हो सकता है। इस तरह कांग्रेस के लिए फिलहाल संकट टल गया है, लेकिन जल्द दूसरा हमला तय है….! तब करिए इंतजार…. और देखते रहिए हिमाचल सरकार!