September 8, 2024

बीजेपी के ‘परिवार’ में चढ़ी वंशवाद की हैरान कर देने वाली बेल, पूर्व प्रधानमंत्रियों के रिश्तेदारों की भरमार

बीरेंद्र कुमार झा

लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों का एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है।बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में अक्सर परिवारवाद (भाई-भतीजावाद) का मुद्दा उठाते रहे हैं।बीजेपी ने वंशवाद की लड़ाई के खिलाफ रहने को
अपना मुख्य मुद्दा बनाया है।बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाता रहे हैं।लेकिन अब बीजेपी में भी ऐसे परिवारवादियो की लिस्ट काफी लंबी चली है।

अब चुनाव से पहले कई पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व उप प्रधानमंत्री के परिवार के सदस्य बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। हाल ही में हरियाणा के मंत्री और पूर्व डिप्टी पीएम देवीलाल के बेटे रणजीत सिंह चौटाला का इस लिस्ट में ताजा नाम जुड़ा है। रणजीत सिंह को हिसार संसदीय सीट से पार्टी ने टिकट दिया है।इस लिस्ट में कांग्रेस के दो गैर गांधी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पीवी नरसिम्हा राव के परिजन भी शामिल हैं।

परिवारवाद पर क्या बोले थे पीएम मोदी

इसी साल फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए विपक्ष पर परिवारवाद को लेकर जमकर निशाना साधा था। पीएम मोदी ने कहा था कि देश परिवारवाद से त्रस्त है, विपक्ष में एक ही परिवार की पार्टी है।हमें देखिए, बीजेपी न राजनाथ जी की पार्टी है और न ही अमित शाह की। हमारे यहां एक परिवार की पार्टी ही सर्वेसर्वा नहीं है।कांग्रेस के परिवारवाद का खामियाजा देश भुगत रहा है। यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

पीएम मोदी ने बताया था परिवारवाद का मतलब

पीएम मोदी परिवारवाद का मतलब समझाते हुए कहा था कि हम किस परिवारवाद की बात करते हैं? अगर किसी परिवार में एक से ज्यादा लोग जनसमर्थन से अपने बलबूते पर राजनीति में आते हैं तो उसे परिवारवाद नहीं कहते हैं।मोदी के मुताबिक हम परिवारवाद उसे कहते हैं जब एक परिवार ही पार्टी चलाता है. जब एक परिवार ही पार्टी के सारे फैसले करता है, उसे परिवारवाद कहा जाता है।हम चाहते हैं कि एक ही परिवार के 10 सदस्य राजनीति में आए, नवयुवक राजनीति में आए लेकिन परिवारवाद के जरिए नहीं।यह चिंता का विषय है।

पीवी नरसिम्हा राव के बेटे का ठिकाना बनेगा बीजेपी

मोदी सरकार ने इसी साल पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया था।इसके बाद नरसिम्हा राव के बेटे प्रभाकर राव ने प्रधानमंत्री मोदी की खुलकर तारीफ की थी। अब ऐसी खबर है कि प्रभाकर राव के जल्द ही तेलंगाना में बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।नरसिम्हा राव के पोते एन वी सुभाष पहले से ही बीजेपी में हैं।

पीवी नरसिम्हा राव साल 1991 से 1996 तक भारत के 9 वें प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत थे।28 जून 1921 को जन्मे नरसिम्हा का जन्म तेलंगाना के वारंगल जिले के वंगारा गांव में हुआ था।90 के दशक में उन्होंने नई औद्योगिक नीति लागू की, जिसने विदेशी निवेश को आकर्षित किया और भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ा।उन्हें करीब 18 भाषाओं के जानकारी थी।

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर

साल 2019 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर समाजवादी पार्टी और राज्यसभा से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे।साल 2007 और 2009 में दो बार बलिया से सांसद चुने गए। इससे पहले उनके पिता इस सीट पर सांसद रहे थे।नीरज शेखर वर्तमान में बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं।

17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर एक ऐसे भारतीय राजनेता थे जिनका जीवन त्याग और संघर्ष से भरा रहा। 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के 8 वें प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहते हुए उन्होंने अल्पमत सरकार का नेतृत्व किया और अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए देश की सेवा की।जनता दल से अलग हुए गुट के नेता के रूप में, उन्होंने अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता और कुशल नेतृत्व का परिचय दिया।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी

जनता पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजीत सिंह एक ऐसे नेता थे जिन्होंने भारतीय राजनीति में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया।उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल (RLD) का गठन किया और एनडीए-यूपीए दोनों दलों ही गठबंधन की सरकारों में मंत्री रहे।वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में मंत्री रहे।नरसिम्हा राव सरकार में कृषि मंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में कृषि मंत्री और मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री का कार्यभार संभाला।

अब हाल ही में उनके बेटे और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी ने लोकसभा चुनावों के लिए विपक्षी गठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल होने का फैसला किया है।

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बेटे और पोते

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली जनता दल (सेक्युलर) भी कर्नाटक में एनडीए के साथ गठबंधन में है।2024 लोकसभा चुनाव में एनडीए ने जेडीएस के साथ तीन सीटों पर गठबंधन किया है।

कर्नाटक की हासन लोकसभा सीट पर गौड़ा परिवार की गढ़ रही है।पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के परिवार से यहां जिसने भी चुनाव लड़ा हर बार उन्हें जीत मिली।2019 लोकसभा चुनाव में एचडी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना ने जीत दर्ज की थी।

साल 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी की 13 दिनों की सरकार गिरने के बाद एचडी देवेगौड़ा ने सत्ता संभाली थी। तब किसी भी पार्टी के पास बहुमत नहीं था, ऐसे में संयुक्त मोर्चा के उम्मीदवार एचडी देवेगौड़ा ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के परिवार का साथ

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के परिवार का राजनीति में लंबा इतिहास रहा है ।दो पीढ़ियों में 22 सदस्यों में से 9 लोगों ने अलग-अलग राजनीतिक दलों में अपना करियर बनाया है।लाल बहादुर शास्त्री के पोते और हरि कृष्ण शास्त्री के बेटे विभाकर शास्त्री इसी साल फरवरी में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए।

पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद साल 1964 में लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बनाए गए थे।वे एकदम शांत स्वभाव के थे और सादगी भरा जीवन व्यतीत करते थे।पीएम बनने से पहले उन्होंने रेल मंत्री, परिवहन एंव संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री और गृह मंत्री का कार्यभार संभाला था.

पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने परिवार को राजनीति से दूर रखकर दिया मिसाल

लालकृष्ण आडवाणी सबसे लंबे समय तक बीजेपी के अध्यक्ष पद पर रहे हैं।1970 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने।सांसद के तौर पर तीन दशक तक लंबी पारी खेलने के बाद आडवाणी पहले गृह मंत्री रहे, फिर अटल बिहारी सरकार में साल 1999 से 2004 तक उप प्रधानमंत्री बने।

लालकृष्ण के एक बेटे जयंत आडवाणी और एक बेटी प्रतिभा आडवाणी हैं।लालकृष्ण आडवाणी के परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं है।लालकृष्ण आडवाणी के बेटे जयंत आडवाणी पेशे से बिजनेसमैन हैं।कहा जाता है कि लालकृष्ण आडवाणी का मानना है कि अगर उनके बच्चे राजनीति में आते हैं तो उनपर वंशवाद का आरोप लग सकता है. इसलिए वह नहीं चाहते थे कि उनके बेटे राजनीति में आएं।