October 18, 2024

क्या अमेठी से स्मृति ईरानी को टक्कर दे पाएंगे कांग्रेस उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा ?

अखिलेश अखिल 

देश की नजर रायबरेली  और अमेठी सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवारों की प्रतीक्षा थी ,लेकिन वह प्रतीक्षा भी समाप्त हो गई। आज इन सीटों पर नामांकन का अंतिम दिन है। रायबरेली से राहुल गन्दी खुद चुनाव लड़ने जा रहे हैं जबकि अमेठी से कांग्रेस ने गाँधी परिवार के ख़ास रहे किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतार कर सबको चौंका दिया है। अब यह भी कहा जा रहा है कि क्या ाशर्मा अमेठी में स्मृति ईरानी का मुकाबला कर सकेंगे ?


बता दें कि  किशोरी लाल शर्मा गांधी परिवार के सबसे नजदीकी स्थानीय कार्यकर्ताओं में से एक हैं। वो मूलतः खत्री ब्राह्मण हैं, लुधियाना की उनकी पैदाइश है। राजीव गांधी के करीबी थे, उन्हीं के साथ पहली बार अमेठी आए और तब से यहीं के होकर रह गए।

जब भी गांधी परिवार इन दो सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा, तब भी केएल शर्मा यहां जमे रहे और स्थानीय लोगों से घुलते मिलते रहे। सोनिया गांधी के सांसद बनने के बाद से लेकर अब तक अमेठी और रायबरेली सीटों पर जमीनी काम करने और कराने का सारा जिम्मा के एल शर्मा ही उठा रहे थे। जो लोग इस इलाके से आते हैं, वो केएल शर्मा के नाम को जानते होंगे। वो मृदु भाषी, सरल व्यक्तित्व, कुशल मैनेजर और मीडिया की चकाचौंध से दूर रहते हैं।

पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं में खुशी होगी कि किसी बाहरी को यहां से नहीं थोपा गया है। कार्यकर्ता अपनों के बीच से ही कांग्रेसी प्रत्याशी चाहते थे। इंटरनल सर्वे में ये बात निकल कर आई थी।

जातीय समीकरण में भी किशोरी लाल फिट बैठते हैं। अमेठी में दलित (26 फीसदी), मुस्लिम (20 फीसदी) और ब्राह्मण (18 फीसदी) का दबदबा है। कांग्रेस को लगता है कि जातीय समीकरणों के हिसाब से के एल शर्मा को फायदा हो सकता है। गांधी परिवार ने भरोसा दिया है कि वो प्रचार के काम में किशोरी लाल शर्मा के साथ भरपूर साथ देंगे।

करीब 55 हजार वोटों से राहुल गांधी 2019 में स्मृति ईरानी से हारे थे। इन पांच सालों में केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद स्मृति ईरानी ने यहां पर काम करवाए और स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने का काम भी किया। अब तो उन्होंने अपना घर भी वहां बनवा लिया है। वो लगातार यहां से संपर्क बनाकर रखी हुई हैं। आती-जाती रहीं, जबकि राहुल गांधी इक्का-दुक्का ही हारने के बाद अमेठी आए।

अमेठी भी अब हॉट सीट बन गई है। गांधी परिवार भले ही सीधा चुनाव न लड़ रहा हो, पर मुकाबला गांधी परिवार के ही नुमाइंदे से है, जो गांधी परिवार की पसंद से पहली बार चुनावी मैदान में उतरा है।