September 20, 2024

नजरिया – चुनावों के बीच ‘पेंशन स्कीम’ की घोषणा के पीछे की सियासत

चार राज्यों में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जिस ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम’ (यूपीएस) को स्वीकृति दी है, उससे 23 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारियों को लाभ होगा. मोदी सरकार ने इस स्कीम को ‘सुनिश्चित आर्थिक सुरक्षा’ करार दिया है. अलग-अलग श्रेणियों में जो पेंशन बनेगी, वह ‘सुनिश्चित’ तौर पर सेवानिवृत्त हो रहे कर्मचारी को मिलेगी. पेंशन के साथ ‘महंगाई राहत’ को भी जोड़ा गया है. यदि राज्य सरकारें भी इस नई घोषित स्कीम से जुडऩा चाहती हैं, तो कुल 90 लाख के करीब कर्मचारी इसके दायरे में होंगे. यह स्कीम 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगी. इससे पहले ‘ओल्ड पेंशन स्कीम’ (ओपीएस) थी, जिसमें संशोधन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘न्यू पेंशन स्कीम’ (एनपीएस) बनवाई थी.

यह दीगर है कि केंद्र में सत्ता बदल गई, लेकिन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने एनपीएस को ही जारी रखा. गौरतलब है कि चुनावी राजनीति के मद्देनजर ही केरल, राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और हिमाचल की सरकारों ने ओपीएस लागू करने की घोषणाएं की थीं. तब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें थीं. अब भाजपा सरकारें हैं, लिहाजा राजनीति भी बदली हुई है. केंद्र द्वारा उक्त स्कीम की घोषणा करते ही महाराष्ट्र की भाजपा-समर्थित ‘महायुति सरकार’ ने भी इसकी घोषणा कर दी. यह विशुद्ध राजनीति है. बहरहाल सवाल है कि नई पेंशन स्कीम क्यों घोषित की गई है? क्या इस यूपीएस में ओपीएस और एनपीएस के तत्त्व भी शामिल हैं? यह दोनों पेंशन योजनाओं के बीच का रास्ता है. पेंशन में आर्थिक सुधार किए जा सकते थे. अब राजनीति के मद्देनजर असमंजस बने रहेंगे कि यूपीएस लागू करें या ओपीएस को लागू करने के प्रयास किए जाएं!

बेशक यूपीएस की घोषणा से खासकर केंद्रीय कर्मचारी गदगद हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे ही उनके संगठनों के साथ विमर्श किया. उनके पक्ष और तर्क सुने गए. मोदी सरकार ने 2023 में, पेंशन सुधार के संदर्भ में ही, एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया था. उसने कई देशों की पेंशन-व्यवस्था का अध्ययन किया. विश्व बैंक की रपटें भी पढ़ीं. अंतत: यूपीएस की व्यवस्था और उसकी विशेषताएं तय की जा सकीं. भारत में 65-70 करोड़ कामगार हैं. उनमें भी केंद्र और राज्य सरकारों के करीब 90 लाख कर्मचारी हैं, जो पेंशनधारक रहेंगे और उनकी मृत्यु के बाद पत्नी या पति को 60 फीसदी पेंशन मिलती रहेगी. यूपीएस का सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ना निश्चित है.

खुद सरकार के अनुसार नई योजना से, पहले वर्ष में ही 6250 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. जो कर्मचारी एनपीएस के दौर में (2004 में) सेवानिवृत्त हुए थे, उनके एरियर भुगतान के लिए भी 800 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे. 2023-24 में केंद्र और राज्य सरकारों ने पेंशन के लिए क्रमश: 2.3 लाख करोड़ रुपए और 5.2 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए थे. राज्यों और संघशासित क्षेत्रों के पेंशन के लिए बजट को इकट्ठा कर दिया जाए, तो 2023-24 में उनके राजस्व व्यय का अनुमानत: 12 फीसदी बनता है. यह छोटी पूंजी नहीं है. उप्र, केरल, हिमाचल के संदर्भ में यह पूंजी काफी ज्यादा है. बेशक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से बढ़ रही है, लेकिन यह इतनी भी नहीं है कि हम 2047 में ‘विकसित भारत’ का सपना साकार कर सकें. अब यूपीएस में भारत सरकार 18.5 फीसदी का योगदान देगी, जबकि पहले यह हिस्सा 14 फीसदी का था. यह भी अतिरिक्त बोझ है. यह राशि पेंशन के तौर पर एक बहुत छोटे श्रम-बल पर खर्च की जानी है. पेंशन हमारी व्यवस्था की परंपरा रही है कि जिस कर्मचारी ने जीवन के 25-30 साल सरकार को दिए हैं, उसका बुढ़ापा ‘सुनिश्चित’ होना चाहिए.