September 8, 2024

बड़ी रोचक है नालंदा की लड़ाई ,जदयू के कौशलेन्द्र को चुनौती दे रहे हैं भाकपा माले के संदीप सौरभ

न्यूज़ डेस्क 
इस बार नालंदा की राजनीति क्या होगी यह कोई नहीं जानता। नालंदा का अपना इतिहास है लेकिन नालंदा का सच यह भी है कि यान नालंदा नीतीश कुमार का क्षेत्र भी है। नीतीश कुमार यही से राजनीति करते रहे। बाद में नालंदा से अपने खास नेता कौशलेन्द्र को नीतीश कुमार उतारते रहे और उनकी जीत भी होती रही। इस बार भी नालंदा से जदयू के कौशलेन्द्र ही मैदान में हैं लेकिन इस बार का माहौल  बदल चुका है। जदयू यहाँ से  1996 से 2019 तक जीत हासिल करती रही। नीतीश की पार्टी से ही दिग्गज नेता जार्ज फर्नांडिस 1996, 98 और 99 में जीतकर सांसद बने। 

इस लोकसभा सीट पर मौजूदा मुकाबला भी बेहद दिलचस्प है, एनडीए में हुए समझौते के तहत यह सीट जदयू के खाते में आई है। यहां से 2009, 14 और 19 में जीतने वाले कौशलेंद्र कुमार पर ही पार्टी ने दांव लगाया है। उनके सामने हैं 36 साल के युवा संदीप सौरव। किसान परिवार के संदीप भाकपा-माले के प्रत्याशी हैं। इस दल को महागठबंधन ने बिहार में तीन सीटें दी हैं। नालंदा इसी में से एक है।

संदीप जेएनयू से पीएचडी हैं। छात्र राजनीति की है और छात्र संघ के महासचिव रहे हैं। सक्रिय राजनीति में 2017 से हैं। प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर भाकपा-माले में आए और 2020 में पालीगंज विधानसभा सीट से विधायक बने। नालंदा में कुल 29 प्रत्याशी मैदान में हैं और एक जून को मतदान होगा।

नालंदा में नीतीश के दबदबे का सबसे बडा कारण कुर्मी वोटर अधिक होना है। कुर्मी यहां 24 फीसदी और यादव 15 फीसदी हैं। मुस्लिम वोटर दस फीसदी हैं। लगभग 22 लाख मतदाता हैं। ओबीसी 40 प्रतिशत हैं। राजगीर के विख्यात रोपवे जाते समय शंख लिपि स्मारक के पास तैनात सुरक्षाकर्मी रोहित कुमार कहते हैं, हमें नहीं पता यहां से कौन प्रत्याशी हैं, बस इतना पता है कि मोदी गरीबों के लिए अच्छा काम कर रहे हैं। रोपवे के पास खिलौनों की दुकान लगाने वाले चंचल प्रसाद कहते हैं, जदयू और महागठबंधन के बीच रोचक मुकाबला होगा। वहीं, नालंदा के खंडहर में गाइड का काम करने वाले प्रवीण कुमार कहते हैं, गरीबों की कोई नहीं सुनता, ऐसा व्यक्ति चुना जाए, जो सबके लिए काम करे।

कौशलेंद्र को नीतीश का बेहद करीबी माना जाता है। वे लाइमलाइट से दूर रहते हैं और 1977 से सक्रिय राजनीति में हैं। जनता दल से टिकट नहीं मिलने पर 1995 में पहली बार इस्लामपुर से विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़े, पर हार गए। लेकिन उन्होंने नीतीश का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इसके बाद उन्होंने कभी नीतीश का साथ नहीं छोड़ा।

2004 में नीतीश बाढ़ और नालंदा दो सीटों से चुनाव लड़े। वे बाढ़ से हारे और नालंदा से जीते। इस जीत में कौशलेंद्र का बड़ा योगदान था। इसी के एवज में नालंदा से उन्हें 2009 में टिकट मिला। वे अब चौथी बार जीत की तलाश में हैं। तीनों बार चुनाव परिणाम रात में आया, इसलिए स्थानीय लोग उन्हें प्यार से अंधेरी रातों की रेस का घोड़ा भी कहते हैं। कौशलेंद्र भी किसान परिवार से हैं।
 

1957 में पटना सेंट्रल सीट का नाम बदलकर नालंदा लोकसभा क्षेत्र किया गया। इस सीट से सात विधानसभा क्षेत्र जुड़े हैं।1957 से 71 तक अन्य सीटों की तरह यहां भी कांग्रेस का दबदबा रहा। कैलाशपति सिन्हा 57 में और फिर तीन बार सिद्धेश्वर प्रसाद सांसद रहे। 77 की लहर में जनता पार्टी से बीरेंद्र प्रसाद जीते। 80 और 84 में भाकपा के विजय यादव विजयी रहे।

89 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और रामस्वरूप प्रसाद जीते। यह आखिरी जीत साबित हुई।91 में भाकपा से फिर विजय यादव जीते। 96, 98, 99 में समता पार्टी से जार्ज फर्नांडिस जीते।